याद है घर की दीवारों को सहारा करना उन से रातों में फ़क़त ज़िक्र तुम्हारा करना जाने वाले ने अभी रख़्त-ए-सफ़र बाँधा है तुम भी अब ज़हर-ए-जुदाई को गवारा करना घर की दहलीज़ पे रख देना दिया जलता हुआ लौट आने का बस इतना ही इशारा करना अक़्ल समझाएगी दिल लगती दलीलें दे कर फिर भी हरगिज़ न कभी इश्क़ दोबारा करना उस ने तस्वीर मुझे दी है ये कह कर 'सीमा' अच्छी यादों से न हरगिज़ तू किनारा करना