तुम्हारी याद का इक सिलसिला रही ख़ुश्बू बहार बन के मिरा रास्ता रही ख़ुश्बू गले लगाया मुझे माँ ने अलविदा'अ कहा तमाम उम्र मिरी राह-नुमा रही ख़ुश्बू अजीब रिश्ता है बारिश का कच्ची मिट्टी से फ़लक से अर्ज़ तलक राब्ता रही ख़ुश्बू हसीं गुलाब भी अब मो'तबर नहीं ठहरे और उस की बातों से बरगश्ता हो गई ख़ुश्बू किए हैं नज़्र बहुत फूल इस मोहब्बत में दयार-ए-इश्क़ में तब दिल-रुबा रही ख़ुश्बू किसी ने हाथ मिलाया था 'सीमा' चाहत से हथेलियों में हमारी सदा रही ख़ुश्बू