याद करना हर घड़ी उस यार का है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं तिश्ना-लब हूँ शर्बत-ए-दीदार का आक़िबत क्या होवेगा मालूम नईं दिल हुआ है मुब्तिला दिलदार का क्या कहे तारीफ़ दिल है बे-नज़ीर हर्फ़ हर्फ़ उस मख़्ज़न-ए-असरार का गर हुआ है तालिब-ए-आज़ादगी बंद मत हो सुब्हा ओ ज़ुन्नार का मसनद-ए-गुल मंज़िल-ए-शबनम हुई देख रुत्बा दीदा-ए-बेदार का ऐ 'वली' होना सिरीजन पर निसार मुद्दआ है चश्म-ए-गौहर-बार का