याद करने को यूँ तो क्या कुछ है कब हमारा जिया हुआ कुछ है और तो कुछ नहीं हमारे पास पर तुम्हारा छुआ हुआ कुछ है एक ही वाक़िआ' था फिर भी याद तुम को कुछ मुझ को दूसरा कुछ है इतना माहिर है दुनिया-दारी में सोचता कुछ है बोलता कुछ है अपनी पलकों को मूँद ले नादाँ सामने कुछ है देखता कुछ है अंदरूँ रोज़ मुझ से कहता है जीते जाने से मुद्दआ' कुछ है ? मौत जब आई तब हुआ मालूम बुझती आँखों में ख़्वाब सा कुछ है उस को जब देखते हुए देखा तब खुला हम पे देखना कुछ है सोच लेते हैं उस को वक़्त-ब-वक़्त जीते रहने में फ़ाएदा कुछ है तुम ने देखा है हाल दुनिया का तुम को लगता है क्या ख़ुदा कुछ है ?