याद में तेरी खो कर हम क्या हो जाते हैं महफ़िल में भी अक्सर तन्हा हो जाते हैं हम तो अपने क़द के बराबर भी न हुए लोग न जाने कैसे ख़ुदा हो जाते हैं रास न आए अपना मिलना-जुलना अगर चलिए तो हम फिर से जुदा हो जाते हैं सुनता नहीं गर अपनी कोई दुनिया में इक नादार की हम भी सदा हो जाते हैं ग़ारों में छुप-छुप कर रहने वाले लोग ख़ुद को मिटा कर कैसे फ़ना हो जाते हैं माँ की दुआओं के बदले ही ऐ 'रिज़वान' दुनिया में हम क्या से क्या हो जाते हैं