याद मुझे दिला गई मेरी वो बेवफ़ाइयाँ आँख में उस की नक़्श थीं कितनी कठिन जुदाइयाँ चेहरे पे क्या अज़ाब थे आँख में कितने ख़्वाब थे होंट खुली किताब थे कहते थे सब कहानियाँ फैली थी उस के आस-पास गहरी उदासियों की बास झाँक रही थी सख़्त प्यास दहक रहे थे जिस्म-ओ-जाँ पलकों पे गुज़री साअ'तें लब पर गिले शिकायतें आँसुओं में हिकायतें धड़कनें साँस सिसकियाँ लफ़्ज़ थे कुछ कटे कटे साँस भी थे बटे बटे बाल थे गर्द में अटे चेहरे पे थीं हवाइयाँ 'शाम' हवा की सिसकियाँ दिन के लहू की सुर्ख़ियाँ दर्द-भरी ये दास्ताँ फैली हैं सब कराँ कराँ