याद रखते किस तरह क़िस्से कहानी लोग थे वो यहाँ के थे नहीं वो आसमानी लोग थे सूखे पेड़ों की क़तारें रोकतीं कब तक उन्हें उड़ गए करते भी क्या बर्ग-ए-ख़िज़ानी लोग थे ज़िंदगी आँखों पे रख कर हाथ पीछे छुप गई दरमियाँ रह कर भी सब के आँ-जहानी लोग थे कल यहीं पर लहलहाती थीं हँसी की खेतियाँ कल यहीं पर कैसे कैसे ज़ाफ़रानी लोग थे टूट कर बिखरे हुए हैं क़ुर्बतों के सिलसिले छुप गए जाने कहाँ जो दरमियानी लोग थे ख़ुश्क मिट्टी बन गए तो बूंदियाँ नहला गईं और हमें क्या चाहिए था आग पानी लोग थे