दर्द के चेहरे बदल जाते हैं क्यूँ मरसिए नग़्मों में ढल जाते हैं क्यूँ सोच के पैकर नहीं जब मोम के हाथ आते ही पिघल जाते हैं क्यूँ जब बिखर जाती है ख़ुश-बू ख़्वाब की नींद के गेसू मचल जाते हैं क्यूँ झील सी आँखों में मुझ को देख कर दो दिए चुपके से जल जाते हैं क्यूँ धूप छूती है बदन को जब 'शमीम' बर्फ़ के सूरज पिघल जाते हैं क्यूँ