याद तेरी भुला रहा हूँ मैं इक नया गीत गा रहा हूँ मैं जो तिरे साथ ही चली गई थी उस घड़ी को बुला रहा हूँ मैं आइने में कहाँ है अक्स तिरा उम्र भर ढूँढता रहा हूँ मैं ये समुंदर है डूबने के लिए फिर भी नाव बना रहा हूँ मैं क्यों धड़कने लगा है तेरा दिल हाल अपना बता रहा हूँ मैं रौनक़-ए-बज़्म-ए-शौक़ याद नहीं हिज्र में मुब्तला रहा हूँ मैं सादगी खींचती है अपनी तरफ़ रंग में डूबा जा रहा हूँ मैं लाख अहल-ए-हुनर से दूर सही इश्क़ से फ़ैज़ पा रहा हूँ मैं ख़्वाब बुझने लगे हैं आँखों में रात भर जागता रहा हूँ मैं इस ज़मीं की नियाज़-मंदी में आसमाँ को झुका रहा हूँ मैं इक नई ज़िंदगी के सीने में इक नया दिल बना रहा हूँ मैं इक पुराने जुनूँ के मलबे पर अक़्ल का घर बसा रहा हूँ मैं