याद उस की कहाँ भुला दी है हम ने आवाज़ बारहा दी है लौ सी फिर दे उठे हैं ज़ख़्म-ए-जिगर फिर किसी ने मुझे सदा दी है देने वाले ने तेरा ग़म दे कर हाए कितनी बड़ी सज़ा दी है अब तो आ जाओ रस्म-ए-दुनिया की मैं ने दीवार भी गिरा दी है आओ आओ क़रीब से देखो ज़िंदगी आँसुओं की वादी है