याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह काफ़िर बने न हम न मुसलमाँ किसी तरह करते हो वा'दा आने का है आँख मुंतज़र कब तक गुज़ारे दिन ये है मेहमाँ किसी तरह आज़ाद इश्क़-ए-यार ने हम को बना दिया माल-ओ-मता' का हूँ न मैं ख़्वाहाँ किसी तरह पीते रहो शराब जहाँ तक कि हो सके शाग़िल न छूटे साक़ी का दामाँ किसी तरह आ जावें गर नसीब से आलम है नज़्अ' का निकले हमारे दिल के भी अरमाँ किसी तरह मर जाऊँ उन के तीर-ए-निगह से नजात हो गर्दन पे मेरे उन का हो एहसाँ किसी तरह ज़िंदाँ हैं फँस गया दिल-ए-मुज़्तर निगाह के बैठे हैं पासबाँ बने मिज़्गाँ किसी तरह बअ'द-ए-फ़ना भी क़ब्र को मिस्मार कर दिया इज़हार-ए-रंज का न हो सामाँ किसी तरह अदवार में अगरचे है 'मरकज़' घिरा हुआ छोड़े न तुझ को रहमत सुब्हाँ किसी तरह