अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला बड़ा क़ातिल बड़ा सफ़्फ़ाक निकला सनोबर क़द-कशी में ख़ाक निकला वो सर्व-ए-क़द चमन की नाक निकला फ़रिश्तों को किया मात आदमी ने क़यामत का ये मुश्त-ए-ख़ाक निकला उड़ा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने क़फ़स से ताइर-ए-इदराक निकला मोहब्बत से खुला हाल-ए-ज़माना ये दिल लौह-ए-तिलिस्म-ए-ख़ाक निकला निकल आई फ़लक की दूर से रूह भँवर से ख़ूब ये तैराक निकला वो पज़मुर्दा था फ़स्ल-ए-गुल जो आई चमन से सूरत-ए-ख़ाशाक निकला शिकार-अफ़्गन मैं दिल को जानता था ग़ज़ाल-ए-बस्ता-ए-फ़ितराक निकला मरे हम आरज़ू उन की बर आए हमारा हौसला क्या ख़ाक निकला जुनूँ में बाग़-ए-आलम को जो देखा अजब सहरा-ए-वहशत-नाक निकला निकलती है बदन से जिस तरह रूह तिरे घर से मैं यूँ ग़मनाक निकला तुम्हारे क़द से कुछ कम सर्व ठहरा सनोबर तो बहुत कावाक निकला हमारी सादा-लौही काम आई हिसाब-ए-रोज़-ए-महशर पाक निकला तरारा फिरते ही पहुँचा अदम में समंद-ए-उम्र क्या चालाक निकला भरे लड़कों ने दामन पत्थरों से जहाँ तेरा गरेबाँ चाक निकला मिटाया दौर-ए-साक़ी मोहतसिब ने अदू जमशेद का ज़ह्हाक निकला 'सबा' हम हश्र को मुजरिम जो निकले शफ़ाअत को शह-ए-लौलाक निकला