यादों का कोई दीप जलाए तो बात है वो चाँदनी है पास बुलाए तो बात है आ कर किसी भी बाग़ में मिल जाए ख़ैर है गोरी अगर न घर पे बुलाए तो बात है फिर ज़िक्र चाहतों का समाअ'त का हुस्न हो फिर दास्तान-ए-वस्ल सुनाए तो बात है है वक़्त मेहरबाँ तो करे शाद-काम दिल ये दूरियों के ज़ख़्म भुलाए तो बात है रुत है मिलन की उस के भी रस्ते में आए हैं ताज़ा गुलाब हाथ पे लाए तो बात है 'आशिक़' है आशिक़ी की ज़रूरी है गर उसे इस आशिक़ी में ख़ुद को गँवाए तो बात है