यादों के गुल दिल के तू गुल-दान में रख आज भी उन की सूरत अपने ध्यान में रख शहर-ए-जफ़ा में अब उस ने बिसराम किया ख़त उस के अब सारे आतिश-दान में रख दुनिया को सौग़ात ख़ुशी की बाँट सदा ग़म पोशीदा अपने क़ल्ब-ओ-जान में रख जाने दुश्मन किस दम सामने आ जाए ग़ाफ़िल मत रह कोई तीर कमान में रख ये तेरे अस्लाफ़ का बाक़ी विर्सा है इस टूटी तलवार को भी सामान में रख जिस से दिल-आज़ारी हो इंसानों की ऐसा कोई सितम न अपनी शान में रख दुखियारों के दर्द का ये भी दरमाँ है ग़म-ख़्वारों के चेहरों को मुस्कान में रख हो के दिल-बर्दाश्ता रिश्ते तोड़ न सब कुछ तो जज़्बे दिल की भी दूकान में रख जाने 'साइर' कब तक़दीर बदल जाए अपने हर मोहसिन को तू पहचान में रख