यादों की क़िंदील जलाना अच्छा लगता है दर्द की लौ को और बढ़ाना अच्छा लगता है ताज़ा हवा थी महकी फ़ज़ा थी क्या थे अच्छे दिन पल पल अब तो पिछ्ला ज़माना अच्छा लगता है तुझ से बिछड़ कर प्यारे वतन तेरी ही चाहत में ग़म से लिपट कर आँसू बहाना अच्छा लगता है मायूसी की राह में जब तक ख़्वाब सुनहरा हो शौक़-ए-सफ़र में ख़्वाब सजाना अच्छा लगता है यूँ ही ख़फ़ा हो जाना उस की आदत है 'सालिम' प्यार से लेकिन उस को मनाना अच्छा लगता है