यूँ तिरी आमद पे मेरा सूना घर रौशन हुआ ग़म-कदे में जैसे तू मिस्ल-ए-क़मर रौशन हुआ गर्दिश-ए-ग़म में हुआ हमदम मिरा ज़ौक़-ए-सफ़र और हसरत के दिए से रहगुज़र रौशन हुआ इश्क़ की चिंगारी तो अंदर मिरे मौजूद थी याद की महफ़िल सजी जब वो शरर रौशन हुआ दोस्तों की दुश्मनी का ज़हर हँस कर पी गया ऐसा ये तिरयाक था जिस से जिगर रौशन हुआ रौशनी की जुस्तुजू में अक़्ल जब हैराँ हुई तो बसीरत की किरन से दिल का दर रौशन हुआ