यादों से महकती हुई इस रात में क्या है ये राज़ खुला आज कि जज़्बात में क्या है इक तुझ से ही उम्मीद लगा रक्खी है वर्ना ये मुझ को ख़बर है कि मिरी ज़ात में क्या है ये कह के परिंदों ने भरी आज उड़ानें शहरों की तरफ़ चलते हैं देहात में क्या है यूँ ग़ौर से हाथों की लकीरें न पढ़ा कर बिगड़ेंगे सँवर जाएँगे हालात में क्या है खिंचते ही चले आते हैं दिल शहर-ए-हवस में जादू तिरी आँखों में तिरी बात में क्या है पहले तो दरख़्तों से निकलती थीं कराहें इस बार ज़रा देखिए बरसात में क्या है