याद पर उँगलियाँ उठाती हूँ ख़्वाब पर तोहमतें लगाती हूँ क्या कहा दश्त का इरादा है तो चलो साथ मैं भी आती हूँ वो जो मुझ से कभी मिला ही नहीं मैं उसे रात दिन सताती हूँ उस को रक्खा है फ़िक्र से आज़ाद ख़ुद पे पाबंदियाँ लगाती हूँ ना कहीं ख़्वाब जान जाएँ मिरा फूल से तितलियाँ उड़ाती हूँ दर का दस्तक के साथ रिश्ता है इस लिए रोज़ खटखटाती हूँ मैं तिरा ख़्वाब देखने के लिए नींद की रौशनी बनाती हूँ आँख को ख़ुश्क कर लिया मैं ने ख़्वाब सैलाब में बहाती हूँ