यगाना उन का बेगाना है बेगाना यगाना है ख़ुदाई से निराला उन बुतों का कारख़ाना है निगाह-ए-नाज़ से सैद अपना मुर्ग़-ए-दिल नहीं होता कभी उड़ता नहीं नावक से जो वो ये निशाना है उधर कलियाँ चटकती हैं इधर शोर-ए-अनादिल है चमन में किस की आमद है ये कैसा शादियाना है जुनूँ ने की है क़ब्र-ए-क़ैस की इस तरह आराइश चराग़-ए-ग़ूल रौशन हैं बगूला शामियाना है हमारा हाल-ए-दिल सुनने से दिल पर चोट लगती है उड़ा देता है नींद आँखों से जो वो ये फ़साना है फला-फूला न किश्त-ए-दहर में तुख़्म-ए-उमीद-ए-दिल नहीं आगाह जो नश्व-ओ-नुमा से ये वो दाना है जहाँ कोशिश ज़रा की नक़्द-ए-मज़मून उस से हाथ आया ज़मीन-ए-शेर में भी दफ़्न क्या कोई ख़ज़ाना है बयाँ करता है मेरे वस्फ़ अक्सर अपनी महफ़िल में ये उस अय्यार की मुझ से लगावट ग़ाएबाना है नवा-संजी से मेरी बुलबुलों के होश उड़ते हैं गुलों से भी कहीं रंगीं सिवा मेरा तराना है तू मुश्ताक़ों से अपने चश्म-पोशी रोज़ करता है तिरे दीदार की दौलत भी क़ारूँ का ख़ज़ाना है उरूस-ए-मर्ग से शादी हुई है ख़ूँ से लब तर है गले में ये शहीद-ए-नाज़ के जोड़ा शहाना है कल उन से पूछ लेंगे करते हो अब भी दिल-आज़ारी जहाँ तक चाहें कर लें ज़ुल्म आज उन का ज़माना है हमें बख़्शे न बख़्शे दख़्ल या मर्ज़ी में मालिक की वगरना उस की रहमत को तो दरकार इक बहाना है जबी-सा रहते हैं हर-दम मलक जिन्न-ओ-बशर तो क्या दर-ए-दौलत सरा-ए-यार का वो आस्ताना है अनादिल की सदा क्या बूम भी है जिस जगह अन्क़ा 'क़लक़' इस गुलशन-ए-वीराँ में अपना आशियाना है