यहाँ सब से अलग सब से जुदा होना था मुझ को मगर क्या हो गया हूँ और क्या होना था मुझ को अभी इक लहर थी जिस को गुज़रना था सरों से अभी इक लफ़्ज़ था में और अदा होना था मुझ को फिर उस को ढूँडने में उम्र सारी बीत जाती कोई अपनी ही गुम-गश्ता सदा होना था मुझ को पसंद आया किसी को मेरा आँधी बन के उठना किसी की राय में बाद-ए-सबा होना था मुझ को वहाँ से भी गुज़र आया हूँ ख़ामोशी में अब के जहाँ इक शोर की सूरत बपा होना था मुझ को दर-ओ-दीवार से इतनी मोहब्बत किस के लिए थी अगर इस क़ैद ख़ाने से रिहा होना था मुझ को मैं अपनी राख से बे-शक दोबारा सर उठाता मगर इक बार तो जल कर फ़ना होना था मुझ को मैं अंदर से कहीं तब्दील होना चाहता था पुरानी केंचुली में ही नया होना था मुझ को 'ज़फ़र' मैं हो गया कुछ और वर्ना अस्ल में तो बुरा होना था मुझ को या भला होना था मुझ को