यहाँ तो फिर वही दीवार-ओ-दर निकल आए किधर को यार चले थे किधर निकल आए कहाँ का पा-ए-वफ़ा और कहाँ का दश्त-ए-तलब कि अब तो रस्ते कई मुख़्तसर निकल आए हुआ रफ़ीक़ न बेगार-ए-शौक़ में कोई मक़ाम-ए-ज़र पे कई मो'तबर निकल आए गुरेज़ करते हैं साए से भी मिरे अहबाब कहीं इधर भी न ये आशुफ़्ता-सर निकल आए हुआ न कोई भी पुर्सान-ए-हाल ज़िंदों का मरे हुओं के कई नौहागर निकल आए रहे ज़रा दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता पर नज़र 'अंजुम' उसी सदफ़ से अजब क्या गुहर निकल आए