यहाँ शोर बच्चे मचाते नहीं हैं परिंदे भी अब गीत गाते नहीं हैं वफ़ा के फ़लक पर मोहब्बत के तारे ख़ुदा जाने क्यूँ झिलमिलाते नहीं हैं दिलासा न दे यूँ हमें शैख़ सा'दी दिलों में समुंदर समाते नहीं हैं विरासत में वाइ'ज़ लक़ब पाने वाले मोहल्ले की मस्जिद में जाते नहीं हैं मुसव्विर ने तस्वीर-ए-फ़ुर्सत बना कर कहा वक़्त को हम बचाते नहीं हैं ख़स-ओ-ख़ार से घोंसला शह कड़ी पर अबाबील क्यूँ अब बनाते नहीं हैं हमें तुम सिखाओ तुम्हें हम सिखाएँ सभी काम तो हम को आते नहीं हैं ये दुनिया-ए-दो रंग-ओ-रोज़ा के मंज़र कि 'अबरार' अब दिल लुभाते नहीं हैं