यही इक जिस्म-ए-फ़ानी जावेदानी का अहाता करने वाला है किराए का मकाँ ही ला-मकानी का अहाता करने वाला है ठहर जाओ घड़ी भर धड़कनों इस तेज़-रौ का जाएज़ा ले लूँ सुकूँ अंदर का बाहर की रवानी का अहाता करने वाला है इसे आँसू समझ कर मत गिराओ रहने दो पलकों पे ही गोया यही क़तरा तुम्हारी बे-ज़बानी का अहाता करने वाला है गिला बरसों का है जितनी सफ़ाई दोगे उतना तूल पकड़ेगा अब हर्फ़-ए-माज़रत ही लन्तरानी का अहाता करने वाला है इन आँखों में ग़ज़ल का वो मुकम्मल इस्तिआ'रा है कि जो 'आज़िम' ख़ुतूत-ए-जिस्म के लफ़्ज़-ओ-मआनी का अहाता करने वाला है