न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा वही वही नज़र आएगा जहाँ जहाँ देखा बहिश्त में भी उसी हूर को रवाँ देखा यहाँ जो देख चुके थे वही वहाँ देखा ख़िज़ान-ए-उम्र कुजा ओ कुजा बहार-ए-शबाब फ़लक को रश्क हुआ कोई जब जवाँ देखा गए जहान से जो लोग दो जहाँ से गए किसी ने फिर न कभी अपना कारवाँ देखा जलाया बज़्म में हर रोज़ शम्अ के मानिंद हज़ारों बातें सुनाईं जो बे-ज़बाँ देखा क़यामत आई ये तड़पा फ़िराक़ में ऐ 'बर्क़' न फिर ज़मीन को पाया न आसमाँ देखा