यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा इसी तरह से कटी ज़िंदगी तो क्या होगा अभी तो हम-नफ़सों को है वहम-ए-चारागरी हुई न दर्द में फिर भी कमी तो क्या होगा ये तीरगी तो बहर-ए-हाल छट ही जाएगी न रास आई हमें रौशनी तो क्या होगा उमीद है कि कभी तो लबों पे आएगी कभी न आई लबों पर हँसी तो क्या होगा नफ़स नफ़स में फ़ुग़ाँ है नज़र नज़र में हिरास कुछ और दिन यही हालत रही तो क्या होगा