यही होता है अक्सर ज़िंदगी में कि थोड़ा ग़म भी शामिल हो ख़ुशी में उदास आँखों में पलकों की नमी में झलकती थी वफ़ा भी बे-रुख़ी में वहाँ दुश्वार था ख़ुद से भी मिलना तलाश-ए-यार क्या हो बे-ख़ुदी में गिले-शिकवे तो होते ही रहेंगे चलो कुछ देर बैठें चाँदनी में अँधेरों से शिकायत हो तो क्या हो दिखाई कुछ न दे जब रौशनी में न कोई आरज़ू दिल में शिफ़ा की न हासिल है शिफ़ा चारागरी में मिसाल 'अर्जुन' की रखना याद हर दम बहुत आगे बढ़ोगे ज़िंदगी में ग़नीमत है कि अब भी देखते हैं हम अपने-आप को इस अजनबी में 'ख़याल' इतने न थे कम-ज़र्फ़ पहले बड़ी गहराई थी तिश्ना-लबी में