यही हुआ है जो उस रहगुज़र से गुज़रे हैं हज़ार हश्र के मंज़र नज़र से गुज़रे हैं वो राहें आज भी नक़्श-ए-वफ़ा से हैं रौशन मिज़ाज-दान-ए-मोहब्बत जिधर से गुज़रे हैं ख़ुदा करे न वो गुज़रें किसी की नज़रों से जो सैल-ए-दर्द-ओ-बला मेरे सर से गुज़रे हैं छुपाए आँखों में आँसू दिलों में दर्द-ओ-फ़ुग़ाँ वफ़ा शनास यूँही तेरे दर से गुज़रे हैं तलाश-ए-यार में हम क्या डरें मुसीबत से हज़ार बार रह-ए-पुर-ख़तर से गुज़रे हैं खिला गए हैं मोहब्बत के फूल काँटों में तुम्हारे चाहने वाले जिधर से गुज़रे हैं दिल-ओ-जिगर में उजाला है आज तक जिन का कुछ ऐसे जल्वे भी 'कशफ़ी' नज़र से गुज़रे हैं