यही हम को गुमाँ अक्सर रहे हैं हमारे नाम वो जाँ कर रहे हैं अभी है दौर-ए-आग़ाज़-ए-मोहब्बत वो मेरा दिल दुखाते डर रहे हैं वफ़ा उन की तबीअ'त में नहीं है वो कोशिश तो यक़ीनन कर रहे हैं क़ज़ा का ख़ौफ़ है लोगों को लेकिन हम अपनी ज़िंदगी से डर रहे हैं वही भटके हुए हैं रास्ते से ब-ज़ात-ए-ख़ुद जो इक रहबर रहे हैं जो अपने आप से भी ख़ुश नहीं हैं ख़फ़ा मुझ से वही अक्सर रहे हैं मिरी रुस्वाई हो जाए न ज़िंदा वो मेरा नाम ले कर मर रहे हैं करेंगे शायरी भी अगले दम पर अभी तो हम मोहब्बत कर रहे हैं 'शिखा' मैं मीठे पानी की नदी हूँ मुझे क्यों लोग खारा कर रहे हैं