यही तज़ाद तो हैरान करने वाला है कहाँ चराग़ रखा है कहाँ उजाला है मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ इस वास्ते नशे में हूँ मुझे बताओ हरम है कि ये शिवाला है रईस-ए-शहर का ये आली-शान बंगला भी किसी ग़रीब से छीना हुआ निवाला है अमीर लोगों से महफ़ूज़ रख मिरे मालिक फिर इक ग़रीब की बेटी ने ख़ुद निकाला है उन्हीं के सर पे न गिर जाऊँ आसमाँ बन कर सितमगरों ने मिरा नाम तो उछाला है हैं इंतिज़ार में तारे भी चाँद भी वो भी सुना है रात में सूरज निकालने वाला है हवा की राह में जलता चराग़ है 'राही' वो क्या बुझेगा जिसे रौशनी ने पाला है