यही तो एक शिकायत सफ़र में रहती है हवा-ए-गर्द मुसलसल नज़र में रहती है जज़ा-ए-काविश-ए-ता'मीर ये मिली है हमें सदा-ए-तेशा सदा साथ घर में रहती है हुनर किसी में हो क़िस्मत है उस की दर-बदरी कि आब-ओ-ताब-ए-गुहर कब गुहर में रहती है समाअतों का पयम्बर ही बन सके तो सुने वो दास्ताँ जो लब-ए-चश्म-ए-तर में रहती है हर एक सुब्ह पे मक़्तल का हो रहा है गुमाँ न जाने कौन सी सुर्ख़ी ख़बर में रहती है