यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम क्या ख़िरद क्या शकेब क्या आराम हक़ में उश्शाक़ के क़यामत है क्या करम क्या इताब क्या दुश्नाम मुझ कूँ गुल-गश्त-ए-बाग़-ए-ज़िंदाँ है सब्ज़ा ज़ंजीर-ओ-शाख़-ए-सुम्बुल-ओ-दाम मय-कशी कूँ तिरी गुलिस्ताँ में सर्व-ए-मीना है दौर-ए-नर्गिस-ए-जाम वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रिब का चाँद रुख़ लब शफ़क़ है गेसू शाम आरज़ू है जो मंज़िल-ए-मक़्सूद तर्क-ए-मतलब है मुद्दा-ए-तमाम सिद्क़-ए-दिल सें 'सिराज' बाँधा है काबा-ए-कू-ए-यार का एहराम