यक-ब-यक जो किसी का ख़याल आ गया रूह बे-ख़ुद हुई दिल को हाल आ गया दहर से रस्म-ए-मह्र-ओ-वफ़ा उठ गई आदमिय्यत में कैसा ज़वाल आ गया कोई देखे तिरे हुस्न की साहिरी जिस ने देखा तुझे उस को हाल आ गया पड़ गई जब किसी की निगाह-ए-करम मेरे भौओं में रंग-ए-कमाल आ गया पूछते क्या हो 'परवेज़' की दास्ताँ उन की महफ़िल से हो कर निढाल आ गया