यक-ब-यक ये हो गए अंदाज़ क्या फिर सुनी दिल ने वही आवाज़ क्या सो गया हँस कर फ़ना की गोद में और करता भी कोई जाँ-बाज़ क्या दर्द-ए-हस्ती फिर चमक उट्ठा है आज हो गई ग़ाफ़िल वो चश्म-ए-नाज़ क्या दैर ओ काबा ही पे क्या मौक़ूफ़ है दिल नहीं है जल्वा-गाह-ए-नाज़ क्या काकुलें लहरा रही हैं दम-ब-दम बज रहा है तीरगी का साज़ क्या क़हक़हे अश्क ओ तबस्सुम और फ़ुग़ाँ ज़िंदगी क्या ज़िंदगी का राज़ क्या उन निगाहों में है फिर मेहर-ओ-वफ़ा रुक सकेगी वक़्त की पर्वाज़ क्या है फ़क़त बेदारी-ए-एहसास 'नक़्श' दास्तान-ए-शौक़ का आग़ाज़ क्या