यक़ीन है न गुमाँ है ज़रा सँभल के चलो अजीब रंग-ए-जहाँ है ज़रा सँभल के चलो सुलगते ख़्वाबों की बस्ती है रह-गुज़ार-ए-हयात यहाँ धुआँ ही धुआँ है ज़रा सँभल के चलो रविश रविश है गुज़र-गाह-ए-निकहत-ए-बर्बाद कली कली निगराँ है ज़रा सँभल के चलो जो ज़ख़्म दे के गई है अभी नसीम-ए-सहर सुकूत-ए-गुल से अयाँ है ज़रा सँभल के चलो ख़िराम-ए-नाज़ मुबारक तुम्हें मगर ये दिल मता-ए-शीशा-गराँ है ज़रा सँभल के चलो सुराग़-ए-हश्र न पा जाएँ देखने वाले हुजूम-ए-दीदा-वराँ है ज़रा सँभल के चलो यहाँ ज़मीन भी क़दमों के साथ चलती है ये आलम-ए-गुज़राँ है ज़रा सँभल के चलो