यक़ीनन हम को घर अच्छे लगे थे मकीं पहले मगर अच्छे लगे थे उसे रुख़्सत किया और उस से पहले यही दीवार-ओ-दर अच्छे लगे थे वो दरिया हिज्र का था तुंद दरिया उदासी के भँवर अच्छे लगे थे हमारे हाथ में पत्थर का आना दरख़्तों पर समर अच्छे लगे थे सऊबत तो सफ़र में लाज़मी थी मगर कुछ हम-सफ़र अच्छे लगे थे वो चेहरे जिन पे रौशन थी सदाक़त लहू में तर-ब-तर अच्छे लगे थे