यक़ीं का रंग भी है वहम का ग़ुबार भी है फ़रेब-ए-हुस्न-ए-नज़र दश्त-ए-ए'तिबार भी है ख़िज़ाँ का रंग भी है मो'तबर चमन के लिए ये हुस्न-ए-गुल है जो मिन्नत-कश-ए-बहार भी है असीर-ए-वहम-ओ-गुमाँ है न जाने कब से निगाह अगरचे पेश-ए-नज़र हर्फ़-ए-ए'तिबार भी है ये मैं ने माना सुकूँ मौत की अलामत है मगर सुकूँ के लिए दिल ही बे-क़रार भी है रुकी रुकी सी अगरचे है काएनात की नब्ज़ बिखरते टूटते लम्हों का इंतिशार भी है अजीब तुरफ़ा-तमाशा है इस को क्या कहिए कि दिल-फ़िगार भी 'मंज़र' वफ़ा-शिआ'र भी है