फुसून-ए-रंग तजल्ली-ए-ख़्वाब-ज़ार न दे निगाह दे भी तो मिन्नत-कश-ए-सहार न दे कुछ और ज़ौक़-ए-तजस्सुस को मुर्तइश कर दे सुकूँ नज़र को न दे क़ल्ब को क़रार न दे तवहहुमात के सहरा से फिर गुज़ार मुझे यक़ीं का सोज़ न दे हर्फ़-ए-ए'तिबार न दे न दे वो ज़ोर के ईमान ज़ुल्म पर रक्खूँ शिआ'र जब्र को समझूँ वो इख़्तियार न दे मैं क़र्ज़-ख़्वार अगर हूँ तो फिर तक़ाज़ा न कर तो सूद-ख़्वार है तो ज़िंदगी उधार न दे छुपा छुपा के न रख हर्फ़ हर्फ़ में ख़ुद को जुनूँ-शिआ'र नज़र-पैरहन उतार न दे