यारब दिया है हुस्न तो ये भी कमाल दे मैं हँस पड़ूँ तो फूल भी ख़ुश्बू उछाल दे अंदाज़ मेरी प्यास का जानेगा कोई क्या चाहूँ तो इक पहाड़ भी चश्मा निकाल दे हस्ती तो नीस्ती में बदल जाएगी मगर ईमान मुझ को मेरे ख़ुदा ला-ज़वाल दे शायद वो मेरे फ़न को समझने लगा है अब वर्ना वो ऐसा कब था कि आँसू निकाल दे कैसा अजीब दोस्त है जब भी मिलूँ उसे मेरे ही सामने मुझे मेरी मिसाल दे मैं माँगती हूँ तुझ से दुआ ऐ मिरे ख़ुदा जब भी क़लम उठाऊँ अनोखा ख़याल दे 'ज़रयाब' तो बशर है मगर बस करम की बात रग रग में तू ही थोड़ा सा जाह-ओ-जलाल दे