ज़िक्र उस रात से है वाबस्ता जो तिरी ज़ात से है वाबस्ता जीत मेरी फ़क़त मिरी तो नहीं ये तिरी मात से है वाबस्ता आँख से ले के दिल तलक का सफ़र इन्किशाफ़ात से है वाबस्ता कोई तो है जो तेरी आँखों के इन इशारात से है वाबस्ता मेरे अशआ'र में तिरा पैकर इस्तिआ'रात से है वाबस्ता फ़िक्र अब तक तिरी कहानी के इक़्तिबासात से है वाबस्ता थीं मिरी आँख में कभी किरनें अब जो बरसात से है वाबस्ता हिज्र के मोड़ पर जमी है नज़र और लम्हात से है वाबस्ता किस की आमद है आज जो 'ज़रयाब' इंतिज़ामात से है वाबस्ता