यारो घर आई शाम चलो मय-कदे चलें याद आ रहे हैं जाम चलो मय-कदे चलें दैर-ओ-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके है एक ही मकान चलो मय-कदे चलें अच्छा नहीं पिएँगे जो पीना हराम है जीना न हो हराम चलो मय-कदे चलें यारो जो होगा देखेंगे ग़म से तो हो नजात ले कर ख़ुदा का नाम चलो मय-कदे चलें साक़ी भी है शराब भी आज़ादियाँ भी हैं सब कुछ है इंतिज़ाम चलो मय-कदे चलें ऐसी फ़ज़ा में लुत्फ़-ए-इबादत न आएगा लेना है उस का नाम चलो मय-कदे चलें फ़ुर्सत ग़मों से पाना अगर है तो आओ 'नूर' सब को करें सलाम चलो मय-कदे चलें