ये आलम हो तो फिर दिल को भला क्यूँकर क़रार आए किसी की याद जब रह रह के दिल में बार बार आए अजब अंदाज़ से मस्ताना-वार उन का शबाब आया छलकता जाम ले कर जैसे कोई बादा-ख़्वार आए मोहब्बत दोनों जानिब पैरवी करती रहे लेकिन न उन को ए'तिबार आए न मुझ को ए'तिबार आए क़फ़स ही जब नशेमन है तो रोना क्या बहारों का बला से अब गुलिस्ताँ में ख़िज़ाँ आए बहार आए क़रार-ओ-बे-क़रारी लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं दोनों न 'फ़रमान' इस पे हर्फ़ आए न उस पर कोई बार आए