ये आरज़ू है हज़र में हों या सफ़र में रहें तिरे ख़याल में गुज़रें तिरी नज़र में रहें जो याद-ए-यार सताती है अब न फ़िक्र-ए-विसाल तो चल के दूर कहीं अर्सा-ए-ख़तर में रहें अजीब लुत्फ़ से गुज़रें ये दिन जो यूँ गुज़रें कि तेरे दिल में रहें और अपने घर में रहें ये सादगी है कि दिल चाहता है यूँ भी हो कभी ज़मीं पे रहें और कभी क़मर में रहें