ये ग़म नहीं कि ख़ुशी में भी कुछ मज़ा न रहा हमें ये ग़म है कि अब ग़म भी जाँ-फ़ज़ा न रहा वो ख़्वाब था कि जिएँ दिल की आरज़ू के लिए ये वाक़िआ है कि मरने का हौसला न रहा न कोई यार न कोई दयार क्या कीजे सिवाए साँस के अब कोई सिलसिला न रहा ज़बान काँटों की प्यासी रहे रहे न रहे हमारे पाँव में जब कोई आबला न रहा बस एक अर्ज़ ओ समा रह गए हैं ले दे के सिवाए उन के कोई अपना आश्ना न रहा हज़ार नक़्श बना और हज़ार नक़्श मिटा किसी वरक़ पे हक़ीक़त का माजरा न रहा