ये अपना वस्फ़-ए-देरीना कि अय्यारी नहीं करते वतन से हम किसी क़ीमत पे ग़द्दारी नहीं करते गिरफ़्तार-ए-बला रहते हैं लेकिन शुक्र है यारो किसी तौर अपनी हम नीलाम ख़ुद्दारी नहीं करते अभी ख़ंजर लिए रहता है गलियारों में हर कोई उड़ेगा सर तुम्हारा भी कि हुश्यारी नहीं करते गिले इस के अलावा कुछ न होंगे पूछ कर देखो हम उन के दर पे सुब्ह-ओ-शाम दरबारी नहीं करते हमारी बे-गुनाही हो गई शामिल गुनाहों में तो मुंसिफ़ किस लिए हुक्म-ए-सज़ा जारी नहीं करते वो जिन के ख़ाना-ए-दिल में है किंदील-ए-अना रौशन ग़लत रस्म-ओ-रिवायत की तरफ़-दारी नहीं करते ख़ुदा के नेक बंदों की है ये पहचान ऐ 'अंजुम' वो अपने क्या पराए की दिल-आज़ारी नहीं करते