ये अर्ज़ क्या है ख़ला क्या है और समा क्या है तिरी ही ज़ात है हर-सू तिरे सिवा क्या है ये मश्ग़ला है तमाशा है सिलसिला क्या है बना बना के मिटाता है माजरा क्या है जो सोज़-ए-दिल से मुबर्रा हो वो दुआ क्या है जो रूह में न उतर जाए वो सदा क्या है सँभाला दर को तो दीवार गिर पड़ी लोगो ये इत्तिफ़ाक़ अगर है तो सानेहा क्या है फ़ना हो जिस का मुक़द्दर उसे शुमार न कर बस एक ही का तसव्वुर है दूसरा क्या है न जेब है न गरेबाँ न अब गुमान-ए-हयात हमारे पास तिरी याद के सिवा क्या है हिसार-ए-ज़ात से अपनी अगर निकल जाए तो फिर न पूछ कि इंसाँ का मर्तबा क्या है ख़लिश भी चाहिए रस्म-ओ-रह-ए-मोहब्बत में मिले न दर्द की लज़्ज़त तो फिर वफ़ा क्या है जुनूँ के दौर में आदाब-ए-इश्क़ क्या 'शारिक़' किसे ख़बर है रवा क्या है नारवा क्या है