ये और बात कि ये सेहर बेश-ओ-कम पे चला सियाह-रात का जादू मगर न हम पे चला उधर से पहले भी कुछ सरफ़रोश गुज़ारे थे रह-ए-तलब में निशान-ए-क़दम क़दम पे चला ये ताइरान-ए-चमन का नसीब क्या कहिए वो तीर उन के लिए वक़्फ़ है जो कम पे चला ख़ुदा ख़ुदा के इशारे पे लौट लौट गया तड़प तड़प के तरीक़-ए-सनम सनम पे चला कभी ख़ुदा की परस्तिश कभी सना-ए-बुताँ रह-ए-अरब पे कभी जादा-ए-अजम पे चला असीर-ए-दाम न होगा मिरा दिल-ए-आज़ाद किसी का हुक्म कभी मौज-ए-यम-ब-यम पे चला तुझे भी देख लिया हम ने ओ ख़ुदा-ए-अजल कि तेरा ज़ोर चला भी तो अहल-ए-ग़म पे चला ये नक़्श-ए-पा हैं कि ज़ंजीर-ए-मौज-ए-ख़ूँ यारो ये कौन तुरफ़ा-जवाँ जादा-ए-सितम पे चला लब-ओ-निगाह पे मोहरें लगी रहीं 'ताहिर' किसी का ज़ोर न लेकिन मिरे क़लम पे चला