ये बात जान नहीं पाया आइना-गर क्या न हो कोई पस-ए-मंज़र तो फिर है मंज़र क्या अभी तलक मिरी ख़ाना-ख़राबियाँ न गईं छुपा है आज भी शैतान मेरे अंदर क्या है सब हमारी ‘अक़ीदत की कार-फ़रमाई वगरना देवता होता है कोई पत्थर क्या किसी की याद में जीते हैं और मरते हैं है मश्ग़ला कोई दुनिया में इस से बेहतर क्या हमारी प्यास तो शबनम से बुझ भी सकती थी हमारे वास्ते लाए हो तुम समंदर क्या चमक उठे मिरी पलकों पे अश्क के जुगनू हुए हैं दाग़ मिरे दिल के फिर मुनव्वर क्या ये क्या हुआ है कि बे-रब्त हो गए नुक़्ते बदल गया है मिरे दाएरे का महवर क्या चमकती धूप है रस्ता है याद-ए-मंज़िल है बताओ मौसम-ए-दीवानगी में अब घर क्या 'ज़की' हमेशा नुक़ूश-ए-ग़ज़ल निखारते हो तुम्हें हैं इस की रिवायात सारी अज़बर क्या