ये बार बार का बोहतान हम पे झूटा है हमारा दिल तो फ़क़त एक बार टूटा है वो संगलाख़ चटानें हमारे अंदर हैं हमारी आँख का चश्मा वहीं से फूटा है ख़ुशी ग़मी में बराबर शरीक होते हैं चमन के हाल से वाक़िफ़ हर एक बूटा है गिला-गुज़ार हूँ मैं दुश्मनों से इस लिए भी मुझे हमेशा मिरे दोस्तों ने लूटा है वो जैसे मछली निकलती है आ के काँटे से हमारे हाथ से दामन क़ज़ा का छूटा है मिले हैं कितने ही क़द-काठ वाले लोगों से जिसे भी देखिए अंदर से वो ज़कूटा है लगेगी देर तनावर दरख़्त बनने में अभी तो हिज्र ये परवान चढ़ता बूटा है कहीं दराड़ वो ग़म का पहाड़ टूटने की ज़मीन टूटी है न आसमान टूटा है