ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई नागिन की भाँत डस के मिरा दिल उलट गई बेकल हुआ हूँ अब तो तिरी ज़ुल्फ़ में सजन शब है दराज़ नींद हमारी उचट गई नादान तू नीं ग़ैर कूँ क्यूँ दरमियाँ दिया उल्फ़त तिरी की डोर उसी माँझे सीं कट गई मुझ बावले का शोर उठा देख कर के फ़ौज बादल की भाँत डर सीं रक़ीबाँ की फट गई तोड़ी प्रीत हम सीं पियारे ने 'आबरू' लागी तो थी ये बेल प आख़िर उखट गई