यार रूठा है हम सें मनता नहिं दिल की गर्मी सीं कुछ ओ पहनता नहिं तुझ को गहना पहना के मैं देखूँ हैफ़ है ये बनाव बनता नहिं जिन नें उस नौ-जवान को बरता वो किसी और को बरतता नहिं कोफ़्त चेहरे पे शब की ज़ाहिर है क्यूँ-के कहिए कि कुछ वचंता नहिं शौक़ नहिं मुझ कूँ कुछ मशीख़त का जाल मकड़ी की तरह तनता नहिं तेरे तन का ख़मीर और ही है आब ओ गिल इस सफ़ा सीं सनता नहिं जियो दुनिया भी काम है लेकिन 'आबरू' बिन कोई करंता नहिं